वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 6 August 2011

मुझे सँवारे


          
        मुझे सँवारे

क्यों आतुर हैं शब्द कागज़ पर उतर आने को 
हर बंदिश तोड़ उन्मुक्त,प्रफुल्ल हो जाने को !

सावन में ज्यों नाचे मोर,घिरें जब बदरा कारे
कातर पपीहा कानन में ज्यों पिहू-पिहू पुकारे !

तपती-झुलसती रेत तरसे रिमझिम बौछार को
उन्मादी तरिणी बेचैन सागर की थाह पाने को ! 

स्वाति-जल अभिलाषी चातक कारे घन निहारे
              चकोर अपने चाँद को; एकटक, मगन निहारे !              
                         
 काग़ज़-कश्ती हाथ लिए खोजें किसी तलैया को 
 कटी पतंग पीछे भागें ज्यों जीवन-पूँजी पाने को 
                                       
ये कौन है जो हौले से दस्तक दे; मुझे पुकारे 
मरू में बरखा बन आये, लह्काए मुझे सँवारे 


5 comments:

  1. सुंदर भावों से सजी रचना.

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  2. भूषणजी

    आपको मेरे भाव, मेरे शब्द अच्छे लगे, शुक्रिया |

    सुशीला

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  3. क्यों आतुर हैं शब्द कागज़ पर उतर आने को
    हर बंदिश तोड़ उन्मुक्त,प्रफ्फुल हो जाने को !
    kitne sunder sabdo me sajaya hai aapne apne alfajo ko, badhai ...........

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  4. Aap ne blog p..Achi writing ki Hai
    Aap Apna blog template change kar d
    Acha template set kare.

    सुंदर भावों से सजी रचना.
    KiTne Sunder sabdo me Ssjaya Hai Aapne Alfajo ko........

    nice work..
    best lack...

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