वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 22 October 2011

सीरत




ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई

देखा झाँक खुद के गिरेबां में कभी
कहाँ-कहाँ, कब-कब तेरी नीयत फ़िसल गई

औरों पे फ़िकरे कसने से पहले तू देख तो ले
दोगली सीरत तेरीकर तुझे कैसे ज़लील गई

अब भरोसा करना गुनाह है ये जान ले
भलाई खुद की जां पे बन मुश्किल गई 
चले थे किसी मासूम को बचाने मगर
नेकी से अपनी ही उंगलि झुलस गई 

दगाबाज़ फ़रिश्ता बन फिरते  यहाँ
अपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई 

सदियों से नाशुक्रे, ज़ालिम हैं लोग यहाँ
मीरा को ज़हर ईसा को दी सलीब गई !


Wednesday 12 October 2011

ज़िन्दगी






मरोड़ती है निचोड़ती है 

जिंदगी खूब झिंझोड़ती है



कभी हम सातवें आसमान पे 

कभी खाई में खदेड़ती है


बख्शा है किस शय को इसने

अमृत को हाला में उड़ेलती है


किस बात का है गुरूर तुझे 

देख कैसे बखिया उधेड़ती है