वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday 10 June 2012

तृप्‍ति





बुदबुदे की तरह
भीतर से रीता
परिधि में कैद 
तैर रहा है मन
अज्ञात दिशा की ओर!

एक तृषा
मृगतृष्‍णा
कस्तूरी की गंध
खींचे अपनी ओर

मन बावरा
बिन देखे
बिन जाने
किस भरोसे
अपना माने
और चाहे !

पथ के काँटे
निर्मम शूल
होगी क्षमा
उसकी भूल
काफ़ी है
हल्की-सी चोट
मिटाने के लिए
उसका वज़ूद!

बखूबी जानता है
कि मिटने से ही
बुझेगी प्यास
अतृप्‍ सफ़र को
मिलेगा तृप्‍ विराम !

-
सुशीला शिवराण

8 comments:

  1. bahut hi sudnar bhav hai apki rachana me

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    1. ्कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद।

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  2. bahut hi khubsurat rachna...
    Sushila ji aapke blog ko dekhne ka 786 wa no.mera

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    1. सुरेश कुमार जी देर आए दुरूस्त आए बस अब बार-बार आते रहिए!
      रचना आपको अच्छी लगी शुक्रिया।

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  3. गहरे भाव!! उम्दा!!

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    1. सलिल जी आपने उम्दा कह दिया तो लगा कि किसी परीक्षा में distinction से पास हो गई! हार्दिक आभार!

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  4. सुंदर भाव भरी रचना....
    सादर।

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  5. आज तो आपने ट्रीट दे दी रचनाओं की एक से बढ़के एक ... . .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhaia
    शनिवार, 30 जून 2012
    दीर्घायु के लिए खाद्य :
    http://veerubhai1947.blogspot.de/

    ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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